ॐ महालक्ष्म्यै नमो नमः
माँ महालक्ष्मी के कृपा से ही आप धनवान और समृद्ध बन सकते है |
माँ के आशीर्वाद के बिना आप जिनता प्रयास करे आप धनि नहीं बन सकते |
इस संसार में जो भी नारी है सभी के अन्दर माँ भगवती विराजमान रहती है |
पृथ्वी में हर मनुष्य के मन में हमेशा कुछ ना कुछ इच्छा उत्पन होती रहती है |
१. हर कोई समाज में शक्तिशाली व्यक्तिव और मान सम्मान उची प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है |
२. हर कोई धन प्राप्त करना चाहता है
३. हर कोई प्रेम प्राप्त करना चाहता है
४. हर कोई स्वादिस्ट भोजन प्राप्त करना चाहता है
५. हर कोई मजबूत और शक्तिशाली शरीर प्राप्त करना चाहता है
६. हर कोई काम भोग की प्राप्ति करना चाहता है
७. हर कोई मुलयवन वस्तु प्राप्त करना चाहता है
८. हर कोई बड़े पद को प्राप्त करना चाहता है
९. हर कोई घर प्राप्त करना चाहता है
१० कोई आधात्मिक शक्ति प्राप्त करना चाहता है
११ कोई बहुत सारा ज्ञान प्राप्त करना चाहता है
यह सारी मनुष्य की इच्छा है जिनको अपने जीवन में प्राप्त करना चाहता है | यह सब कुछ आवश्यक तो है पर किस प्रकार प्राप्त करना है अधिकांश लोग अनैतिक कार्य के द्वारा प्राप्त करते है | कुछ ही लोग नैतिक कार्य के द्वारा प्राप्त करते है |
अनैतिक प्रकार से कार्य करने पर परिणाम जल्द मिल जाते है लेकिन बाद में जाकर जीवन में बहुत अत्यधिक दुःख प्राप्त होता है |
नैतिक प्रकार से कार्य करने पर परिणाम धीरे-धीरे मिलता है लेकिन बाद में जाकर जीवन में बहुत अत्यधिक सुख प्राप्त होता है |
अनैतिक और नैतिक दोनों प्रकार से कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए बुद्धि की आवश्कता होती है और बुद्धि का प्रयोग करने के लिए मन का शान्त होना अनिवार्य है | तभी आप अपने जीवन में सफल हो सकते है |
१. मन में यह प्रश्न उत्पन होता है की आप जीवन में सफल कैसे होते है ?
उत्तर : मन ही निर्णय लेता है की आप सफल है की नहीं | सबसे पहले आप निर्धारित करे की आपको क्या प्राप्त करना है | जीवन में लक्छ का होना अनिवार्य है | बिना लक्छ के जीवन में कोई नहीं जी सकता |
लक्छ जैसे : धन, पद , वस्तु , साधन, सम्बन्ध, प्रेम , आश्रय, सम्मान ,शक्ति , ज्ञान इत्यादि | जब आप इनमे से किसी को अपने जीवन का लक्छ बना लेते है जब तक आप यह प्राप्त करने में जुट जाते है जब तक आप इस लक्छ को प्राप्त नहीं कर लेते तब तक आप संतुष्ट नहीं हो पाते जिसके करना मन में निश्चिंता भाव नहीं उतपन होता है जिसके के कारण आप लक्छ को प्राप्त करने के लिए लगातार अथक प्रयास करते रहते है और जिस दिन या समय आप अपने लछ्य को प्राप्त कर लेते है तब आप संतुस्ट हो जाते है जब आपका मन निश्चित करता है की आप अपने लक्छ में सफल हो गए है |
१. अगर आपको धन, सम्मान, ज्ञान किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करना है तो क्या उपाए है ?
उत्तर : सबसे पहले आपके मन में शान्ति होना अनिवार्य है | तभी आप किसी भी लछ्य को प्राप्त कर सकते है | मन शान्त रहेगा तभी आप अपने लक्छ पर अधिक ध्यान पूर्वक तरीके से निरंतर कार्य कर सकते है |
२. मन में शान्ति प्राप्त करने के लिए क्या उपाये है ?
उत्तर : सबसे पहले आप क्रोध करना बंद करे तभी आप शान्त रह सकते है |
३. क्रोध को बंद करने के क्या उपाय है ?
उत्तर : हमेशा शाकाहारी भोजन ही खाये | भोजन हमेशा नियमित मात्रा में ही करे | सदैव अपने घर में बनाया और पकाया हुआ खाये | नियमित समय पर ही घर के खाने को ही खाये |
४. क्रोध से बचने के लिए किन प्रकार के भोजन को नहीं खाना है ?
उत्तर : हमेशा के लिए मांशाहारी भोजन त्याग दे |
१.चाय
२.कॉफ़ी
३. चीनी से बने फ़ूड प्रोडक्ट
४. गोलगप्पा
५ मोमो
६.चाइनीस फ़ास्ट पूड
७ हर प्रकार के साउथ इंडियन फ़ूड
८ सभी प्रकार के पैकेट फ़ूड आइटम
जितना आप इन चीजों को खायगे उतना बीमार पड़ेंगे और शरीर में तरह-तरह के रोग उत्पन होंगे सभी को पता है जब शरीर में रोग हो तो मन चिचिड़ाता है और क्रोध भी उतपन होता है |
अगर आपको क्रोध नहीं करना है तो जितना अधिक सम्भव हो उतना घर का बनाया हुआ नेचुरल प्रोसेस से बना हुआ फ़ूड को खाये | तब आपके शरीर में रोग निरोधक छमता बढ़ने लगेगी |
५. क्रोध से बचने के लिए किन परिस्तिथि और स्थानों में पाए जाने वाले भोजन को नहीं खाना चाहिए ?
उत्तर : सिर्फ अपने परिवार को छोड़कर किसी और की शादी, मृत्यु भोज ,जागरण, लंगर, पिकनिक किसी भी प्रकार की पार्टी, इवेंट,ऑफिस पार्टी , न्यू ईयर पार्टी, बर्थडे पार्टी , क्रिसमस पार्टी , ईद, छठ अदि किसी भी पर्व में दिया हुआ भेट, प्रसाद या खाने की वस्तु का सेवन नहीं करना है किसी प्रकार का पर्व इन्वेटर में नहीं जाना है और नहीं खाना है, किसी मित्र, सम्बन्धी, अनजान का दिया हुआ भेट, प्रसाद, खाने पीने चीजों को नहीं खाना है चाहे किसी के घर का बना हुआ क्यों ना हो नहीं खाना पीना है |
६ . क्रोध से बचने के लिए और किन परिस्तिथि और स्थानों में पाए जाने वाले भोजन को नहीं खाना चाहिए ?
उत्तर : रेस्ट्रोरेन्ट, होटल, ठेला, ऑनलाइन फ़ूड सप्लाई, क्लाउड किचन, होम और ऑफिस फ़ूड सप्लाय, कैंटीन, कैटरिंग सर्विस में मिलने वाले सभी प्रकार के भोजन को त्याग दे चाहे शाकाहारी हो या मांशाहारी |
बाहर मिलने वाले किसी भी स्वाद में बना हुआ भोजन ना खाये चाहे वह किसी भी विधि या किसी भी स्वाद में क्यों ना बना हो जैसे उबला, मीठा, खट्टा, तीख़ा, नमकीन क्यों ना बना हो तुरन्त इनको खाना बंद करे |
७. बाहर की चीजों को खाने वाला हमेशा गरीब बनता है और इनको बेचने वाला हमेशा आमिर कैसे ?
उदारण के लिए एक गरीब व्यक्ति की आय महीने में 10000 /- रूपए है |
एक गरीब की आए 10000/-
रोजाना सुबह का नास्ता 50 रूपए खर्च करता है
50 प्रति दिन बाहर खाने में खर्च करते है तो X महीने के 30 दिन = महीने के 1500/- रुपये बर्बाद करता है |
एक महीने में अपने कमाई के 15 प्रतिशत बर्बाद करता है जबकि बैंक या किसी भी संस्था में आप अपना पैसा 1 बर्ष के लिए रखते है तो अधिक से अधिक 9 % ब्याज देती है |
अगर आपके जीवन में आय का स्रोत काम है तो आप तुरन्त बाहर खाना बंद करे |
अगर आप काम काजी है तो घर से टिफ़िन बनना कर ले जाये |
घर में बनना कर टिफ़िन और नास्ता खाने पर महीने के अधिकतम खर्च आधी हो जाती है |
उद्धरण के लिए 1500 /2 =750 प्रति महीने 750/- रुपये बचाये जा सकते है |
अगर आप 750 /- प्रति माह सेविंग 5 साल के लिए करते है |
तो आपके पास 5 =साल बाद 45000 हजार जमा हो जायेंगे |
ऐसी ही छोटी सेविंग से लोग धन बनाते है |
जो आपका सम्मान करे आप भी उनका सम्मान करे | जो आपका सम्मान न करे उन पर ध्यान मत दो | उनको अपने जीवन में मन से त्याग दे , वरना आपको मन में कष्ट होगा |
अगर आपके परिवार के सदस्य मे से कोई है जो आपको सम्मान नहीं कर रहा है जिनसे आप खुद परेशान है तो आप कुछ समय के लिए आप शान्त रहे | यानि २ से ३ दिन के लिए आप शान्त रहे | सबसे पहले आप अपने आप पर ध्यान दे की आपने खुद कितनी बार अपनी गलती को मन में स्वीकार किया है और कितनी बार आपने दुसरो को उनकी गलती पर छमा करने का प्रयास किया है | अगर आपके कई बार छमा करने के बाद भी लगातार आप किसी सदस्य से परेशान है तो आप उनको अपने मन से त्याग दे ना की जीवन से आपको उस सदस्य से घृणा नहीं करनी है सिर्फ त्यागना है | अगर आप उस सदस्य को घृणा करेंगे तो आप उस सदस्य के बारे में सोचने या देखने के साथ -साथ क्रोधित हो जायेंगे और आपका मन और बुद्धि भ्रष्ट होने लगेगा | इसलिए आवश्यक है की उस सदस्य को आप अपने जीवन से त्याग दे |
प्र्श्न है त्यागना कैसे है और त्यागने का क्या अर्थ है ?
उतर : त्यागने का अर्थ है की उस व्यक्ति को उतना आवश्यक व्यक्ति नहीं समझना है, उसके साथ अपने जीवन के महत्वपूर्ण और निजी बातों नहीं बोलना है यह भी ध्यान रहे की आपको उनके साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार भी नहीं करना है जैसे की अवशब्द और मार-पीट नहीं करना है | आपको शान्त रहना है आपको उस व्यक्ति के बातों और हरकतों ज्यादा ध्यान नहीं देना है पर आपको कुछ सतर्क भी रहना आवश्यक है की वह व्यक्ति आपका कोई बड़ा अहित ना कर दे | क्योकि ऐसे व्यक्ति अति स्वार्थी होते है |
समस्त संसार में अधिकांश व्यक्ति स्वार्थी की तरह ही व्यवहार करता है इसलिए बोला जाता जो जैसा व्यवहार करे आपको भी उसके साथ आप अपनी समझदारी के साथ व्यवहार करना चाहिए |
समस्त संसार में व्यक्ति इतने स्वार्थी क्यों होते है ?
उत्तर : स्वर्ती व्यक्ति सब कुछ मुफ्त में पाना चाहता है | वह किसी और के परिश्रम को महत्व नहीं देता | स्वार्थी व्यक्ति किसी को परिश्रम का उचित मोल बिना दिए सब कुछ मुफ्त में पाना चाहते है जिसके लिए वह किसी को भी धोखा देने से पीछे नहीं हटते |
क्या किसी स्वार्थी व्यक्ति पाचनने का कोई नियम है ?
उत्तर : आप कभी भी किसी स्वार्थी व्यक्ति को पहचान नहीं सकते यह एक भूल -भुलैया है आप जितना समझने का प्रयास करेंगे आप उतना उलझते जायेगे यह असम्भव है स्वार्थी व्यक्ति को पहचाना | स्वार्थी व्यक्ति वास्तव में बुद्धिमान होता है पर वह अपने फायदे के लिए दुसरो को हानि पहुंचाने से नहीं चुकता है जिसके लिए वह हर सम्भव प्रयास करता है जिससे उसको किसी प्रकार का कुछ लाभ प्राप्त हो | स्वार्थी व्यक्ति अपने दोष छुपाने में बहुत अधिक सचेत रहता है स्वार्थी व्यक्ति अपनी चालाकियों को कभी उजागर नहीं होने देता है और अपने आपको समाज में अच्छा और प्रतिठित व्यक्ति प्रमाणित करने में सक्षम होता है |
स्वार्थी व्यक्ति अपनी बातो को सही प्रमाणित करने के लिए तरह-तरह के प्रयास करता है | जैसे की कुछ इस प्रकार का झूठी कहानी गड़ता जिसमे अपने पात्र को सही दिखाना और दुसरो को झूठा बताना |
समस्त संसार में स्वार्थी व्यक्तित्ववाले लोग समय और आव्यशकता के अनुसार तरह - तरह के नाटक करते है जैसे :
१. स्वार्थी व्यक्ति ख़ुद को लाचार बेचारा और मुर्ख दिखता है |
स्वार्थी व्यक्ति अपने आप को लाचार बेचारा और मुर्ख क्यों दिखता है ?
उत्तर : खुद की गलतियों पर परदा डाल सके या सामने वाले के दुःख कर कारण जान सके | क्योकि कुछ लोगो को पता नहीं होता की जब कोई लोग किसी विषय में आपस में बाते करते है तो सामने वाला भी उसी प्रकार ही बाते करने लगता है | जैसे : जब कोई व्यक्ति अपने दुःख का कारण बताता है तो दूसरा व्यक्ति भी आपका दुःख का कारण बताने लगता है |
जिसके कारण स्वार्थी व्यक्ति सामने वाले के दुःख कर कारण जान लेता है | बाद में अवसर देखकर उसका लाभ उठा लेते है |
स्वार्थी व्यक्ति किस प्रकार किसी के दुखो कर लाभ उठता है ?
एक स्वार्थी व्यक्ति जब किसी के दुःख का करना जान लेता है तो उसको घुमाफिराकर वैसी ही बाते करने लगता है जिससे उसका दिमाग फिर से पुराने दुखो दुबारा बताने लगे और थोड़ी देर बाद उसका शान्त मन अशांत हो जाये फिर वह लगातार कुछ समय के उसका मन उन दुःख भरे विचारो को सोच-सोच कर परेशान होता रहे और जिससे वह स्वार्थी व्यक्ति उस अवसर का लाभ उठा सके अपने फायदे के लिए |
२. स्वार्थी व्यक्ति अचानक अपने व्यवहार में परिवर्तन करने लगता है |
स्वार्थी व्यक्ति अचानक अपना व्यवहार क्यों परिवर्तित कर लेता है ?
- अचानक अपने व्यवहार में परिवर्तन कर लेता है बहुत अधिक मीठी वाणी बोलने लगता है | जिससे आप कुछ समय के लिए अच्छा
- अचानक आपकी बातों को धैर्य के साथ सुनाने के लिए तैयार रहता है |
- कुछ देर तक आपको अपने साथ रखता है और फिर जब आप अपनी बातों को बोलना प्रारम्भ करते है तो वही व्यक्ति आपकी बातो अनसुना कर देता है और आपकी और ध्यान देना बंद कर देता है जिसके कारण आप अचानक से अपने आप को अकेला अनुवभ करने लगते है और आपको यह समझ नहीं आता की आपके साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है | यह वास्तव में एक मनोवैज्ञानिक तरीका है किसी के आत्मविस्वास गिराने के लिए जिसके कारण अकेला अनुभव करते है और जिसके कारण आप किसी साथी का साथ खोजने लगते है |
- तभी कोई नया व्यक्ति आपसे अचानक गहरी दोस्ती करने लगता है और तब आप भावनाओं में बहकर अपनी सारी मन की गुप्त बातो को उसके साथ साझा करने लगते है | जिसके करना आपके अन्दर के वक्तित्वा का उजागार कर देते है जिसके कारण आपकी बुद्धि स्तर सामने वाले को पता चल जाता है |
- अचानक आपकी मदद करने के लिए तैयार रहता है |
- अचानक अपने समस्याओं को आपको भी बताने लगता है |
किसी भी प्रकार से भय या लाभ दिखाकर आपको किसी कार्य में समलित करना व्यस्त करना या अपनापन दिखाना फिर आपका विश्वास प्राप्त करना या किसी संस्था में मिलाना | फिर कुछ समय तक आपको कुछ सहायता प्रदान करना जिसके करना आपका उनपर पूरा विश्वास हो जाना उसके बाद आपका पूरा विश्वास जीत लेने तक आपके और आपके परिवार तथा आपकी मन, बल, बुद्धि, छमता, सम्पति, रिश्ते जितना हो सके आपके बारे में भांप लिए जाता है | फिर उसके बाद आपसे लगातार जितना ज्यादा हो सके हर प्रकार के उचित और अनुचित का लाभ लेना प्रारम्भ हो जाता है |
इस स्वार्थी संसार में आप किसी स्वार्थी के बातों ज्यादा ध्यान ना दे यह संसार ऐसा ही चल रहा है आप इस संसार की सुधरने की प्रतीक्षा या सुधारने का प्रयास ना करें | आप अपने जीवन में किसी कर्म को निर्धारित कर की आपको क्या प्राप्त कर है और सिर्फ आप अपने कर्म पर ध्यान दे और कर्म को धर्म और निष्ठा पूर्वक ही करे कभी भी छोटी-छोटी असफलताओ से ना घबराये निरंतर प्रयास और परिश्रम शुद्ध बुद्धि से करते रहे | क्योकि इस संसार में अधिकांश लोग अपने स्वार्थ के कारण ही कार्य करते है या तो लाभ पहुंचते है या हानि पहुंचते है |
क्योकि यहाँ हर स्वार्थी व्यक्ति हमेशा आपसे कुछ लाभ पाने के लिए ही आपसे बाते करेगा या तो भय देगा या ख़ुद को लाचार और भयभीत दिखेगा कभी आवश्यकता से अधिक मीठी वाणी बोलेगा , कभी अपनापन दिखेगा कभी क्रोध दिखेगा, उसके बाद आपसे उसको जो पाना था मिल गया तो तुरन्त वहाँ से निकल जायगा और अगर उसको आप से जो स्वार्थ प्राप्त करना था और अगर नहीं मिला तो वह स्वार्थी व्यक्ति आपको हर प्रकार से तब तक परेशान करेगा | वह तब तक आपको परेशान करेगा जब तक वह जो पाना चाहता था वह मिल नहीं जाता | इसलिए स्वार्थी संसार की चिन्ता करे यहाँ जो आपसे सही व्यवहार कर है आप भी उसे से सही व्यवहार करे और जो उचित व्यवहार ना कर उनको त्याग दे |
जिस प्रकार परमेश्वर श्री कृष्ण ने भी शिशुपाल को पारिवारिक सम्बन्ध के कारण अपने परिजनों को वचन दिया की मे शिशुपाल के १०० गलतियों को माफ़ कर दूंगा | लेकिन जब शिशुपाल ने अपनी मर्यादा का उलंघन किया तो श्री कृष्ण ने शिशुपाल को त्याग दिया | इस कथन का यह अर्थ है जब कोई सम्बन्ध कभी बहुत बड़ी समस्या बन जाये तो उसमे पूर्ण विराम लगाना अनिवार्य होता है |
उसी प्रकार अगर आपको किसी व्यक्ति या वस्तु से समस्या है तो उसको अपने जीवन से त्याग दीजिए तभी आप उस से मुक्त हो पायेंगे| आपको कुछ इस प्रकार से त्यागना है जैसे की वह व्यक्ति या वस्तु आपके जीवन में और संसार में कभी था ही नहीं |
जब आपके जीवन में समस्या अधिक और बड़ी होने लगे तो खुद को उस समस्या को दूर कर लेना उचित समाधान है | ध्यान रहे की किसी प्रकार का गलत प्रयास नहीं करना है | कुछ भी करने से पहले थोड़ी देर सोचें फिर कुछ करे| याद रहे की आप जैसा प्रयास करेंगे वैसा परिणाम आपको ही मिलेगा |
जिस प्रकार शिशुपाल कृष्ण का अपमान तो कर ही रहा था और साथ में जब उसने नारी का अपमान करने लगा तभी उसका अन्त होना तय हो गया था |
जिस प्रकार रावण ने माता सीता का हरण कर अनुचित कार्य किया तभी उसका अन्त होना तय हो गया था |
जीवन में सुख, समृद्धि और जीवन में धन से सन्तुष्ट रहना चाहते है तो सदैव हर नारी का सम्मान करे |
नारी में माता चन्द्र ग्रह का प्रतिक होती है अगर आप माँ का अपमान करते है तो आपको चन्द्र ग्रह का दोष लगता है जिसके कारण मन में अशान्ति की वृद्धि हो जाता है | चाहे आपके माता जीवित हो या स्वर्ग वाशी कभी भी माँ का अपमान न करे | मन में अशान्ति की वृद्धि होने पर जीवन में हरप्रकार से दुःख बढ़ने लगता है |
नारी में माता के बाद पत्नी ,बहन, बेटी,भांजी,भतीजी,बुआ,मौसी,मामी ,चाची ,नानी,दादी और किसी भी रिश्ते में नारी का अपमान न करे | नारी का अपमान करने पर आपके जीवन माता लक्ष्मी नाराज होती है | आपके जीवन में धन की कमी अधिक होने लगेगी | मन विचलित होने लगता है जीवन में शान्ति और स्थिरता ख़राब होने लगती है |
सदैव प्रयास करे की मन में भी कुछ अवशब्द ना सोचें वरना जीवन में धन, वैभव ,समृद्धि की कमी होने लगती है |
प्रश्न है की मन में अवशब्द ना निकले क्या इसके लिए कोई उचित उपाय है ?
उतर : सर्व प्रथम आपका मन शान्त होना चाहिए तभी आप मन में अनुचित शब्दों का चिंतन नहीं करेंगे |
प्रश्न आता है की मन को शान्त कैसे रखें ?
उत्तर : मन को शान्त रखने के लिए आपको अपने पांचो ज्ञानइन्द्रियो पर नियंत्रण रखना होगा |
प्रश्न यह है की पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ क्या है ?
उत्तर : पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ क्या-क्या है |
१.मुँख : जैसा खाते है वैसा मन में विचार उत्पन होता वैसी प्रत्रिक्रिया देते है |
२.कान : जैसा सुनते है वैसा मन में विचार उत्पन होता वैसी प्रत्रिक्रिया देते है |
३.आँख : जैसा देखते है वैसा मन में विचार उत्पन होता वैसी प्रत्रिक्रिया देते है |
४.नाक : जैसा गन्ध सूँघते है वैसा मन में विचार उत्पन होता वैसी प्रत्रिक्रिया देते है |
५.त्वचा : जैसा स्पर्श करते वैसा अनुभव करते है वैसा मन में विचार उत्पन होता वैसी प्रत्रिक्रिया देते है |
प्रश्न है आप अपने ज्ञान इन्द्रियों को नियंत्रित करने के लिए किन सरल उपाय को उपयोग में ला सकते है |
उत्तर : इसके लिए आपको कुछ नियमों का अभ्यास करना होगा | तभी आप अपने जीवन में मन को शान्त रख पाएंगे | जिसके कारण आप अपने जीवन में शान्त और धैयवान बन पाएंगे जो भी धन, वैभव ,समृद्धि आपने प्राप्त करते है उसे आप सुःख पूर्वक भोग पाएंगे |
सबसे पहला ज्ञान इन्द्रि मुँख है :- मुँख एक ऐसा महत्वपूर्ण अंग है पाँचो ज्ञान इन्द्रियों में सबसे अधिक भूमिका निभाता है क्योकि यह वह ज्ञान इन्द्री जो एक साथ बहुत सारा काम करता है |
मुँख से ही हम सभी भोजन ग्रहण करते है जीवन जीने के लिए |
मुँख के अन्दर जीव्हा है जो स्वाद पता करने में सहायता प्रदान करता है |
मुँख के अंदर दन्त है जो खाने को चबाने में सहायता प्रदान करती है |
मुँख वह भी है जिसके कारण हम सभी वाणी बोलते है और यह वाणी ही है जो हम सभी को संसार में मान सम्मान प्रदान करता है | इसलिए हमें हमेशा उचित वाणी ही बोलना चाहिए | अनुचित वाणी बोलने पर सारे सम्बन्ध धीरे-धीरे ख़राब होने लगते है और कभी - कभी तो प्राण पर सकट पैदा कर देता है |
हम सभी क्या बोलते है यह हमारे मन में उठ रहे विचारों से उत्पन होता है विचारों को नियंत्रण करने में से एक बहुत बड़ी भूमिका भोजन का भी होता है | वाणी में शुद्धता रखने में भोजन का सही चयन आवश्यक है भोजन हमारे जीवन में वाणी को शुद्ध रखने में सहायक होता है यह उनके लिए जो व्यक्ति वास्तव में बहुत अच्छे है पर अकारण ही बुद्धि भ्रष्ट होकर क्रोध वश अपना आप खो देते है |
१. सर्व प्रथम भोजन का चयन करने से पहले भोजन के बारे में जान ले की भोजन कितने प्रकार के होते है और वह शरीर और मस्तिष्क पर कैसा प्रभाव डालते है भोजन को ग्रहण करने के बाद मन में अलग - अलग प्रकार के स्वाभाव फ़लित होता है |
तीन प्रकार के भोजन है सात्विक , राजसिक , तामसिक तीनो अलग-अलग परिणाम देता है | शारारिक और मानशिक स्तर पर |
- शाकाहारी सातविक भोजन - साधारण भोजन, हरी सब्जी, फल, फूल , कन्द , मूल जो मन और शरीर को स्थिरता और शान्ति प्रदान करने में अतिसहायक होता है |
- शाकाहारी राजसिक भोजन - जो दिखने में साधारण भोजन के जैसे ही होते है पर उनमे अतिरिक्त मात्रा में खट्टा, मीठा, तीखा चटपटा, मसालेदार स्वाद विकसित क्या जाता है जिसके कारण लोगो के मन में भोजन के प्रति लोभ और लोलुपता का भाव मन में बड़ने लगता है और अधिक मात्रा में भोजन सेवन करने की इच्छा तीव्र हो जाती है जिसके करना लोग अपना नियंत्रण खो बैठते है बाद में इसके आदि बन जाते है | जैस की मानो किसी प्रकार का नशा हो गया हो और अगर किसी दिन उसके पिछले पसंदीता स्वाद को प्राप्त नहीं कर पाते है मन विचलित होने लगता है तो चीड़-चीड़ स्वभाव मन में विकसित हो जाता है क्रोध बढ़ने लगता है और दिन भर इस अनुभव के साथ परेशान रहते है जैसे की पुरे दिन में कुछ छूट रहा है जिसको वह प्राप्त करना चाहते है |
- तामसिक भोजन लोग उस परिस्थिति और वातावरण में खाने लगे जब लोगो को किसी प्रकार का बनस्पति उपलब्ध नहीं होता था | तब वह जीवित रहने के लिए शिकार कर मांश खाते थे | बाद में धीरे-धीरे लोग मांश को भोजन के रूप में खाने लगे | तामसिक भोजन खाने पर शरीर और मन पर बहुत अधिक दुष प्रभाव पड़ता है | तामसिक भोजन खाने से लोगो के शरीर में छटपटाहट और मन में अतिरिक्त मात्रा में क्रोध, लोभ, हिंसा, अहंकार, अभिमान, घृणा, काम-वाशना सभी प्रकार के नकारात्मक भावनाएं बहुत अधिक मात्रा में बड़ने लगती है जिसके कारण लोग अपने शरीर और मन में शांति नहीं रख पाते जिस कारण वश लोगो अपना आपा खो देते है | मुँख से कुछ भी अनुचित बोल कर अपने सम्बन्धो को ख़राब कर डालते है |
जैसा जीवन आप जीना चाहते है वैसा भोजन ग्रहण करे | जीवन आपका चयन आप सही करें |
जब तक प्राणी जीवित है तब तक आपके पाँचो ज्ञान इन्द्रियों को उपयोग होता रहेगा |जो जीवन जीने के लिए आवश्यकता है अपने ज्ञान इन्द्रियों के लिए सही चयन इन ज्ञान इन्द्रियों के कारण ही जीवन जापन करना प्राणी के लिए सम्भव हो पाता है इस जीवन को सही रखने के वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर सही चयन करना सीखें |
ज्ञान इन्द्रियाँ सही रहेगी तो सही ज्ञान प्राप्त होगा तो और शरीर स्वास्त और मस्तिष्क शान्त रहेगा तो बुद्धि प्रवल होगी |
महत्वपूर्ण है बात है की जीवन हर एक व्यक्ति खुश और सुखी रहना चाहता है चाहे व्यक्ति साधारण हो या विशेष |
पर यह उस व्यक्ति के इच्छा पर निर्भर करता है जीवन किस प्रकार जीना चाहता है और किन कारणों को सुख और ख़ुशी समझता है |
कुछ निम्नलिखित कारण है जिसे लोग अपने ख़ुशी और सुख का कारण समझते है जैसे की :-
- बहुत अधिक पैसे को संचय कर धनवान बनने को सुख और ख़ुशी कारण समझता है|
- किसी प्रकार के विशेष भोजन को सुख और ख़ुशी कारण समझता है|
- काम वासना और भोग विलास को सुख और ख़ुशी कारण समझता है|
- किसी प्रकार के विशेष वस्तु प्राप्त कर लेने को सुख और ख़ुशी कारण समझता है|
यह सारी मनुष्य की इच्छाये है जिसे हर प्रकार का व्यक्ति अपने जीवन में प्राप्त करना चाहता है | परन्तु कुछ ही लोग है जो इसे प्राप्त कर लेते है और कुछ लोग प्राप्त नहीं कर पाते |
ऐसी इच्छाये बाद में जाकर हर प्रकार के व्यक्ति को जीवन भर परेशान करती रहती है या तो अतिरिक्त सफलता प्राप्त करने के कारण शत्रुता भरा जीवन या सफलता प्राप्त नहीं होने पर मन में दुःख फलित होना जिसके कारण कुछ लोगो को अपना जीवन व्यर्थ लगने लगता है|
वास्तव में इस प्रकार से जीवन जीने का लक्ष्य समझते है यह सब प्राप्त करने में लोग अपना जीवन समाप्त कर देते है वास्तव में लोग अपना जीना ही भूल गये है जिसके कारण अधिकांश लोगो हमेशा अधिक सुख प्राप्त करने के चकर में दुसरो को दुःख देते रहते है और खुद भी दुखी रहते है |
प्रश्न लोग वास्तविक जीवन जीना क्यों भुल गए है ?
उत्तर : समस्त संसार में सभी व्यक्ति और लोगो को यह लगने लगा की यही रास्ता है जिनसे लोगो को सुखी और खुश प्राप्त होता है |
- बहुत अधिक पैसे को संचय कर धनवान बनने को सुख और ख़ुशी कारण समझता है|
- किसी प्रकार के विशेष भोजन को सुख और ख़ुशी कारण समझता है|
- काम वासना और भोग विलास को सुख और ख़ुशी कारण समझता है|
- किसी प्रकार के विशेष वस्तु प्राप्त कर लेने को सुख और ख़ुशी कारण समझता है|
इसी संसार में कुछ लोग है जो समस्त संसार के लोगो को इन्ही कारणों से भ्रमित करके रखते है | जिनसे उनका शासन और शोषण चलता रहे और लोग अपना जीवन इसी भ्रान्ति में जीते रहे की उनको ख़ुशी और सुख प्राप्त हो रहा है |
प्रश्न है की क्या लोग इन सभी साधनों से जीवन जापन नहीं करेंगे तो और क्या करना बचा है जीवन जीने के लिए यही तो एक माधयम है जिसके कारण लोग अपना जीवन जीने के लिए तो फिर क्या करेंगे ?
अगर आपको वास्तविक जीवन को जीना है और जीवन को समझना है तो आप १ सप्ताह बिना धन के जी के देखिए तब आपको जीवन की वास्तविकता का आभास होगा की संसार की परिस्तिथि क्या है कौन अपनापन किंतने समय के लिए रख रहा है बिना लाभ के और कौन आपसे दुर जा रहा है अपने छत्ती के भय से |
प्रश्न है की समस्त संसार वह क्या कारण जो लोगो को एक दुसरो के समीप आते है और क्या कारण है जो लोग एक दूसरे भागते है ?
१. लाभ : लाभ वह कारण है जिसके कारण लोग एक दूसरे के समीप आते है |
२.भय : भय वह कारण है जिसके कारण लोग एक दूसरे से दूर भागते है |
कुछ लोग यही दो कारणों से सु:खी भी है और दुःखी भी है | यही वह करना है जहाँ आपने ज्ञान इन्द्रियों संतुलित कर नियंत्रित करना है और उचित निर्णय लेना है की आप अपने जीवन को सुख पूर्वक जीवन जापन कर सके है |
प्रयास करे की आप अपने पाँचो ज्ञानिन्द्रियों पर नियंत्रण रखे | जितना हो सके उतना सन्तुलित रहे | तभी आप अपने विचार को नियंत्रित कर पाएंगे |
मन को नियंत्रण और शरीर को पोषित करने वाला सबसे पहला तत्व है भोजन | जो हर प्राणी की मूल आवश्यकता है जीवित रहने के लिए और यह अनिवार्य है |
पूर्व काल में मनुष्य अपनी विस्तारवादी निति और\अन्य कारणों से पृथ्वी में हर स्थान पर जाने लगा रहने लगा धीरे=धीरे उस वातावरण में ढलने लगा परिस्थितियों के अनुसान जिवित रहने के लिए भोजन खोजने लगा कहीं वनस्पति मिला कही जीव हत्या कर मांश खाने लगा |
लेकिन जिन स्थानो में वनस्पति १२ महीने नहीं उगते है या जहाँ वनस्पति उपलब्ध नहीं है वहाँ लोग जीवित रहने के लिए संघर्ष करना पड़ता है वहाँ लोग जीवित रहने के लिए विवशता वश जीवं हत्या कर मांश भोजन कर जीवित रहने की व्यवस्था करते है | यह उस स्थान में भोजन ग्रहण करने की उनकी मज़बूरी है |
जैसे-जैसे समय वितता गया कुछ लोगो को अनुभव होने लगा कौन से भोजन से स्वास्थ पर कैसा असर पड़ता है |
भोजन अलग-अलग प्रकार से प्राक़तिक में है जैसे : फल, फूल, पत्ती , कन्द, मूल ,अन्न भोजन के रूप में विराजमान है | यह सभी स्वच्छ वर्धक और उपयोगी है स्वाथ को सन्तुलित रखने में सहायक है |
लेकिन जिन स्थानों पर वनस्पति उपलब्ध होता या उगता है वहाँ लोग जीव हत्या कर मांश खाते यह उनके जीवन पर अतिरिक्त बुरा प्रभाव पड़ता है |
प्रश्न क्या माता के मन्दिर जाए बिना इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं हो सकता ?
उत्तर : आप ख़ुद प्रयास कर के देख लो अगर आपसे हो जाता है तो ठीक है और यह अच्छी बात है की आप अपने जीवन में बहुत अच्छी परिस्तिथि में है और अगर बार-बार प्रयास करने के बाद भी आप असफल हो जाते हो माता से आशीर्वाद लेकर प्रयास कर सकते है जीवन में माता से मार्ग दर्शन अवश्य मिलेगा |
प्रश्न अपने पांचो ज्ञानइन्द्रियो पर नियंत्रण कैसे रखना है ?
उत्तर : सबसे पहले अपने स्वास्थ पर ध्यान दे की आपका स्वास्थ कैसा है मानशिक और शारारिक स्तर पर |
अगर आपका स्वास्थ सही है तब आप अपने पांचो ज्ञानइन्द्रियो पर नियंत्रण कर सकते है | अगर आपका स्वास्थ मानशिक और शारारिक स्तर पर सही नहीं है तो आप इलाज कराए | इलाज करने के बाद जब आप मानशिक और शारारिक स्तर पर ठीक हो जाते है उसके बाद कही आप फिर से अधिक बीमार, परेशानियों मे ना फस जाये तो इसके लिए आप सदैव माता की भक्ति और भजन मन से करे |
प्रश्न अगर आपका स्वास्थ शारारिक और मानशिक स्तर पर सही है फिर भी मन संतुस्ट नहीं है तो क्या करे ?
उतर : आपको मन्दिर जाना है माता की भक्ति और भजन मन से करे अपने मन मन्दिर में माता को स्थान देना है और माँ पर विस्वास करें माँ आपके जीवन से सारे कष्ट माँ हर लेगी |
अगर आपका और आपके परिवार के सभी सदस्यो का स्वास्थ सही है बाकी सब कुछ सही चल रहा हो तो भी मन्दिर जाना है |
और अगर आपका और आपके परिवार का स्वस्थ सही नहीं है और बाकी सबकुछ बिगड़ा हुआ है | तब तो आपको सबसे पहले मन्दिर जाना प्राम्भ करना चाहिए | जीवन में आप किसी भी परिस्तिथि में है चाहे आप सुःख हो या दुःख में मन्दिर जाना आपके जीवन के लिए बहुत अधिक लाभकारी सिद्ध होता है |
प्रश्न क्या मन्दिर जाने से कुछ लाभ प्राप्त होता है ?
उत्तर : हर एक के जीवन में कोई ना कोई दोष लगा रहता है | जिसके कारण लोग परेशान होतो रहते है | अगर आप समाधान चाहते है तो माता के मन्दिर अवश्य जाये चाहे आप पर या आपके परिवार पर लाखों दोष कियू ना लगा हो | अगर आप मन्दिर के अन्दर जाते है और माता से प्रार्थना करते है तो माँ के अनुकम्पा से आपको माँ का आशीर्वाद
सकारात्मक ऊर्जा के रूप में प्राप्त होता है | जिसके कारण आपके जीवन में हर प्रकार के दोष कम होने लगते है |
फिर जाकर आपके जीवन में धीरे-धीरे उनती के नये रास्ते खुलने लगते है |
प्रयास करे की सप्ताह १ दिन मन्दिर अवश्य जाए | आपके अपने आप लगेंगे |
नजर दोष , पितृ दोष ,वास्तु दोष, कुंडली में ग्रह दोष का निवारण लगातार मन्दिर जाने पर धीरे-धीरे कम होने लगेगा |
प्रश्न है की किन बातों का ध्यान मन्दिर जाने पर रखना चाहिए ?
उत्तर : मन्दिर जाने के लिए शुद्ध आचरण का भाव मन में रखे तभी आपको लाभ प्राप्त होगा | अगर आपको शुद्ध आचरण का भाव रखने में असुविधा अनुवभ हो रहा है तो नीचे दिए गए नियमों मान कर शुद्ध आचरण का प्रयास कर सकते है और साथ-साथ शुद्ध आचरण में ढल सकते है |
- सुबह उठकर खाली पेट जितना पानी पी सकते है उतना पानी पीजिये |
- उसके बाद अपना नित्य कार्य को कीजिए |
- उसके बाद मुँख में दातुन और कुला कर सही प्रकार से मुँख को साफ कीजिए |
- फिर नहा लिजिये |
- फिर आपको किसी प्रकार का अन्न, जल, फल, चाय, कॉफ़ी, नशीले पदार्थ आदि किसी प्रकार सेवन नहीं करना है |
- मन्दिर हमेशा दिन में जाये |
- मन्दिर हमेशा धुले हुए कपड़े पहन कर ही जाये | कपड़े फटे और मैले नहीं होने चाहिए |
- मन्दिर हमेशा अकेले जाये या अधिक से अधिक सिर्फ अपने परिवार के सदस्यो साथ ही जाये जो वास्तव में साथ जाना चाहते है जो धर्म और माता पे मन से विस्वास करते है |अन्यथा किसी को साथ में लेकर ना जाये |
- मन्दिर में अगर घण्टी है तो हमेशा घण्टी को तीन बार बजा कर ही प्रवेश करना अति शुभ होता करे |
- जिन मन्दिर में घण्टी नहीं मिलेगी वहाँ आप बिना घण्टी के प्रवेश कर सकते है ख़ासकर आपको श्री कृष्ण जी के मंदिर में आपको घण्टी नहीं मिलेगी कुछ आधात्मिक नियम के कारणों से कुछ मन्दिर में घण्टी का प्रयोग नहीं क्या जाता है |
मन्दिर में जाने पर आप अपना और अपने परिवार के मंगल के लिए पूजा करवाना अच्छा होता है |
मन्दिर जाने पर पूजा करवाने की इच्छा नहीं है या आपके पास समय की कमी है फिर भी कम से कम शान्त मन से माता से प्रार्थना अवश्य करे| माता से प्रार्थना करे की आपका और आपके परिवार का स्वास्थ ठीक रहे और जीवन में जितनी भी मानशिक, शारारिक और हर प्रकार की समस्याओं से निदान मिले |
मन्दिर जाने से शुद्ध आचरण का
जीव हत्या दोष क्या है ?
जब आप किसी जीव को अपने स्वाद लोलुप्ता के लिए हत्या कर उसको खाते है तो यह बहुत बड़ा अधर्म है |
जब आप उस जीव को आहार बनाकर सेवन करते है तो उस जीव की आत्मा उस शरीर के चारो और विचरण करती रही है क्योंकी अपने उस जीव को समय से पहले हत्या कर प्राण ले लिए | उसके जीवन काल के समय को आप बर्बाद कर देते है | जिस कारण वह आत्म आपको अनुचित कार्य करने के लिए उकसाती रहती है |
और जैसे ही आप किसी जीव को खाते है आपकी अपनी सकारात्मक ऊर्जा कमजोर होने लगती है | जैसे ही आपकी सकरात्मक कमज़ोर होने लगता है तो जीवन में हर प्रकार का दोष लगना प्राम्भ हो जाता है |
कुछ लोगो अपने तांत्रिक शक्तिओं उपयोग कर आपके पेट में पड़े मृत जीव के अंश के आत्मा को नियंत्रण कर आपके साथ खिलवाड़ कर आपको नुकशान पहुचान सरल हो जाता है | क्योकि आपने उस जीव को समय से पहले हत्या कर दी गई है | शास्त्रों अनुसार यह सत्य है की किसी भी जीव की आत्मा शरीर के चारो और विचरण करती रहती है जब तक उसकी मुक्ति का समय नहीं आता लेकिन लोग तो अपने स्वाद लोलुप्ता के लिए उस जीव की हत्या समय से पहले कर देते है परन्तु उस जीव का जीवन काल जितने समय के लिए निर्धारित क्या हुआ है कब उसको मुक्ति मिलेगी तब तक उस जीव की आत्मा उस व्यक्ति के साथ-साथ विचरण करती रहती है | जिसके कारण उस खाने वाले व्यक्ति की अपनी सकारात्मक ऊर्जा छिन होने लगती है |
अगर आपको लगता है की आप जैसे ही आप किसी भी प्रकार का माँसाहारी भोजन खाते है जीवन में हर प्रकार से असुविधा और अनिस्ट हो रहा है तो तब आप समझ जाये की आप पर तंत्र का नरकात्मक प्रभाव हो रहा है | तो आप हमेशा के लिए आप माँसाहारी भोजन को त्यागे |
जीव हत्या दोष के निवारण से बचना चाहते है उसके लिए आप खुद प्रयास कर सकते है | जीव हत्या दोष से बचने के लिए माँसाहारी भोजन को त्यागे | जान बूझकर कर अपने शारारिक शक्ति की आपूर्ति के लिए भोजन समझ खाना बंद करे | ज्यादा कलयुगी डॉक्टर के चकरो में ना पड़े
यह आपको शरीर स्वस्थ रकने का उपाये बताकर कर माँसाहारी भोजन खिला रहे है |
उपाये देंगे की आप अगर नहीं खाते है तो आपके शरीर में विटामिन ,कैल्शियम इत्यादि की कमी हो जाएगी |
वास्तव में यह एक स्कैम है की माँसाहारी भोजन खिलाकर लगातार बीमार रखने के लिए जिसके मेडिकल डॉक्टर, दवाई कम्पनियाँ , मांश बिक्रेता निरन्तर धन का लाभ कमाने के लिए आपको मिलता है |
प्रश्न कभी-कभी लगता है मन्दिर जाते है फिर भी कुछ ठीक नहीं हो रहा है ?
उत्तर : क्या आप अभी-भी माँसाहारी भोजन ग्रहण करते है | तो आप जीवन भर माता के पास जाते रहे माता आपको आशीर्वाद नहीं देंगी की आप जीवन में सफल हो जाए |
मन्दिर जाकर माता का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करना है तो सबसे पहले माँसाहारी भोजन त्यागें | माँसाहारी भोजन त्यागें तो शरीर स्वस्त होगा | शरीर स्वस्त होगा तो मन स्वस्त होगा मन में बैचनी कम होगी मन में बैचनी कम होगी तो मन से सन्तुलन रखने में सहायक होता है |
मन में संतुलन होने पर वाणी शुद्ध होती है सही निर्णय में सहायक सिद्ध होता है |
अगर आपका मन पवित्र रहेगा तभी मुख में सदैव उचित भाव प्रकट होगा अन्यथा अनुचित शब्द निकल आएंगे |
मन पवित्र रखने के लिए शुद्ध आचरण का अभ्यास करना पड़ता है जो की इतना सरल नहीं होता | परन्तु प्रयाश करने पर जीवन में सफलता अवश्य मिलती है |
हर मनुष्य में ५ ज्ञानइन्द्रिया है इनमे से किसी भी ज्ञानइन्द्रियो नियंत्रण छूट जाने पर मन में अशुद्धि प्रवेश कर लेती है |
१ आँख : आँखो से जैसा देखते है वैसी भाव मन में उत्पन होता है |
२ नाक : नाक से जैसा गन्ध स्वास लेते है वैसी भाव मन में उत्पन होता है |
३ कान : कानो से जैसे शब्द सुनते है वैसी भाव मन में उत्पन होता है |
४ मुँख : मुँख से जैसा भोजन करते है वैसा भाव मन में उत्पन होता है |
५ त्वचा : त्वचा से जैसे चीजों को स्पर्श करते है वैसा भाव मन में उत्पन होता है |
आप ही वह आत्मा है जो निर्णय लेता है की ज्ञानइन्द्रियो के साथ कैसा व्यवहार करना है |
आप सदैव प्रयाश में लगे रहे की अपने ज्ञानइन्द्रियो को शुद्ध रखें |
सर्व प्रथम सम्पूर्ण रूप से मांशाहारी भोजन खाना बंद करे और बदले में हर प्रकार के अनाज, फल, सब्जी, दूध से बने देशी भोजन को खाना आरम्भ करे |
ज्ञानइन्द्रियो को शुद्ध रखने पर ही आप मनुष्य रहते है और नियंत्रण ना रख पाने पर असुर वन जाते है |
क्या आप जीवन में ज्ञानइन्द्रियो पर नियंत्रण पाना चाहते है | जिससे आपके जीवन में सतोष, सुख, समृद्धि प्राप्त हो |
सबसे पहले माँ भगवती के किसी भी मंदिर में जाना प्राम्भ करे | वहाँ जाये जहाँ जिस मंदिर में हमेशा प्रत्येक दिन शुद्ध तरीके से पूजा पाठ होता रहता है वही जाना अच्छा रहता है | जहाँ गन्दगी रहती है पूजा पाठ नहीं होता उन मंदिर में जाना नहीं चाहिए | हमेशा शुद्ध तरीके से पूजा पाठ होने वाले मंदिरो में जाना प्रारम्भ करे |
वहाँ जाकर प्रत्येक दिन पूजा करना अनिवार्य नहीं है सिर्फ आप माँ से प्रार्थना करे की आपके जीवन में जितनी भी समस्याए है निवारण माँ करे |
पूजा अगर नहीं भी करते है तो २,५,१० रुपये दान पैटी डांल कर आए | आपकी ख़ुशी से दे | ना की जबरदस्ती | अगर मन नहीं है तो भी चलेगा | दान देने से आपके दान से मंदिर के कार्य में आपके पैसे लगते है आपका भी विकास होता है |
मंदिर सदैव नहाकर धोकर शुद्ध धुले वस्त्र पहन कर ही जाये | कपङे फटे पुराने गन्दे वस्त्र पहन कर ना जाये |
मंदिर में माता की ऊर्जा की अनुभूति होती है जिससे जीवन में सुधार धीरे-धीरे आने लगता है |
जब आप परेशान रहेंगे तो आपको मंदिर में भी परेशानी अनुभव होता है पर यह वास्तविकता नहीं है लगातार मंदिर जाते रहे समय लगेगा लेकिन जीवन में धीरे-धीरे सुधार आने लगेगा |
मंदिर में कभी भी प्रसाद ना खाये लोग वहाँ भी आपको कुछ अनुचित खिलने का प्रयास करते है सावधान रहे |
दुसरो के द्वारा दिए गए मिठाई या फल, फूल, पति, जल, सरबत के रूप में प्रसाद को ना खाये |
सिर्फ अपने द्वारा बनाये कर चढ़ये गये प्रसाद को ही खाये | भारत के दक्षिण में प्रसिद्ध ओर प्रमुख मन्दिर तिरुपति बालाजी में भी लोगो ने अनुचित खिलने से नहीं चुके तो लोगो का क्या भरोसा आपको प्रसाद बोलकर क्या कुछ अनुचित खिला रहे है |
प्रसाद में बाजार में बनी किसी भी प्रकार की मिठाईओं का प्रयोग ना करे इनमे भी मिलावट और गन्दे स्थानों में बनाई जाती है
हर कारीगर नहाते धोते है भी नहीं है वह सिर्फ जीवन व्यापन करने के लिए वहाँ कार्य कर रहे है | वह सिर्फ वहाँ काम करते है |
बहुत ऐसे भी लोग है जो मिठाइयों के बनाने वाले स्थान साफ-सुतरे नहीं रखते है |
आजकल गलत मिलावट भी अधिक करते है |
ना ही किसी लोकल मिठाई और ना ही किसी ब्रांडेड मिठाई का भी उपयोग न करे चाहे देसी ब्रांड हो या विदेशी ब्रांड सभी गलत प्रकार से मिलावट करते है कोई-कोई ऐसे भी है जो जानवर के चर्बी का भी इस्तेमाल करते है किसी को पता भी नहीं चलता और हम सभी अज्ञान वश माता को जानवर के चर्बी वाली अनुचित मिठाई चढ़ाते रहते है | सिर्फ दुकान में ही साफ-सफाई दिखाई पड़ती है | वास्तविकता में बहुत गन्दा होता है |
कभी भी गलती से बताशा, नकुलदाना या कोई सुखी मिठाईओं का प्रयोग प्रसाद में ना करे यह सभी फैक्ट्री में गन्दे स्थानों में बनाई जाती है यह सारे अशुद्ध होते है जिन्हे पवित्र मानसिकता से नहीं बनाया जाता है |
अगर आप माता को मिठाई चढ़ाना चाहते है तो थोड़ा प्ररिश्रम कर घर पर ही तैयार करे |
जब आप अपने घर में शुद्ध आचरण से प्रसाद को तैयार करते है तो उनमे आपका भाव भी जुड़ा रहता है |
जिनको माता को चढ़ाने पर वैसा प्रसाद शरीर और स्वास्थ के साथ-साथ मन के लिए अच्छा होता है |
अगर आप मिठाई घर में नहीं तैयार नहीं कर सकते तो सिर्फ फल, फूल ही प्रसाद में चढ़ाये |
प्रसाद में सिर्फ स्वच्छ फलो का ही प्रयोग करे | जिन्हे आप धो कर ही प्रयोग कर सकते है |
गलती से भी मंदिर और माता को सर्विस सेंटर नहीं समझना चाहिए जहॉ आप कुछ पैसे दान करते हो और पूजा करवाते हो और उसके बदले में आपको सर्विस मिलती है |
ऐसा गन्दे भाव रखने का मतलब है आप मनुष्य नहीं दानव की भाति व्यवहार कर रहे है जिसके करना आप दिखांवा करने वाले अहंकार और घमंड कर रहे है जिसके कारण माता को अपना नौकर समझने का प्रयाश ना करे |
माता के मंदिर में सदैव श्रद्धा भाव से माता की भक्ति करे |
पूजा पाठ और दान श्रद्धा भाव से करना अनिवार्य है मन में लोभ, क्रोध, मोह नहीं होना चाहिए |
पूजा पाठ आपकी इच्छा पर निर्भर करता है मन करे तभी करे |
परन्तु प्रत्येक दिन प्रार्थना के लिए मंदिर अवश्य जाये |
महीने में एक बार अपने और अपने परिवार के सदस्यो के नाम पर पूजा अवश्य करे |
भक्ति एक श्रद्धा का विषय है यहाँ आपके अन्दर माता के लिए पवित्र भावन रहनी चाहिए | आपके मन में ऐसा अनुभव रहना चाहिए की माता मूरति में विराजमान है वर्णना आप माता की अनुभुति होने पर भी आपका ध्यान इधर उधर जाने लगेगा | इसलिए जरुरी है की माता को मन से श्रद्धा करे माता अवश्य ही आपकी समस्या का निदान करेगी |
ध्यान दे अगर आप किसी नारी को पसन्द नहीं करते है फिर भी उस नारी को और किसी अन्य नारी को कुछ भी अनुचित और कड़वा कथन न कहे | मन में अगर अनुचित शब्द सोचना या बोलने मन कर रहा है और आप मन से शान्त रहे कुछ समय के लिय वहाँ से चले जाये और अगर फिर भी आपके मन में क्रोध बढ़ता जा रहा है तो तुरन्त २ से ३ घुट पानी पी ले |
जल में माँ भगवती का आशीर्वाद सदैव जल में रहता है जो शरीर और मन को शीतलता प्रदान करती है |
कभी - कभी आप अगर अपने जीवन में किसी नारी के बातों से या हरकतों से आप परेशान हो जाते है तो भी आप अपने मन में शान्ति बनाये रखें और उस नारी के बातो और हरकतों पर ध्यान न दे | आप परेशान रहेंगे |
प्रयास रहे की १५ से २० मिनट बाद आपके मन में किसी भी नारी के लिए दुर्भवना ख़त्म हो जाये | अगर आप किसी भी नारी के लिए दुर्भावना मन रखते है तो आपको ग्रह दोष लगता है जिसके कारण धन और सुख समृद्धि की कमी आपके जीवन में हो लगती है |
माँ भगवती हर नारी में विराजमान होते है माँ आपको अलग-अलग रूपों में आपको आशीर्वाद प्रदान करती है |
माँ को हमेशा से ग्रहो में चन्द्रमा से जोड़ कर देखा जाता है | जिन व्यक्तियों के सम्बन्ध माँ के साथ सही नहीं होते वे व्यक्ति जीवन में वास्तविक शान्ति कभी प्राप्त नहीं कर पाते | भले दिखावटी नाटक कर सकते है |
जीवन में आपको वास्तविक शान्ति प्राप्त करना चाहते है तो माँ के भूल को छमा करे और खुद भी माँ से छमा मांगे माँ जीवित हो या स्वर्गवाशी |
सर्वे प्रथम आपकी अपनी माँ जो चंद्र ग्रह की जुणवत्ता जैसे भी ही होती है जो मन में शान्ति प्रदान करती है |नकारात्मक शक्तियों से आद्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करती है जो आपके लिए सदैव भलाई के लिए प्रार्थना करती रहती है , जीवन में हर कार्य को सिद्ध करने के लिए समय पर हर संभव व्यवस्था धन, वस्त्र, भोजन, स्वस्थ शारारिक पोषण, ज्ञान, मनोवल प्रदान करती है अपना जीवन झोक देती है आपको बनाने में और साथ में बहुत सारा प्रेम करती है आप पर सबकुछ निछावर कर देती है | माँ का वखान और विवरण साधारण शब्दो में करना असम्भव है |
जीवन में कभी भी किसी भी कारण से माँ का अपमान और अनुचित लाभ के लिए माँ से छल न करे | अगर आप माँ के साथ इस प्रकार व्यवहार करते है तो विश्व की माँ भगवती रुष्ट होती है और माँ के साथ अधिक अनुचित करने पर कठिन परिस्तिथि उत्पन कर देती है |
कभी-कभी माँ भगवती आपको जीवन में सुधरने का अवसर देती है और सावधान भी करती है फिर भी आप अगर नहीं सुधरते है तो माँ आपसे दूर चली जाती है और साथ में माँ का आशीर्वाद भी ख़त्म हो जाता है और आपके जीवन में विनाश होना शुरू हो जाता है |
अगर आप से कुछ गलती हो जाती है माँ ही जो आपको तुरन्त छमा कर देती है माँ जैसा कहती वैसा ही करे चाहे आपको उचित लगे या न लगे माँ आपको आपसे ज्यादा जानती है | भले आपको कुछ न बताये |
उद्धरण के लिए राजा राम की माता ने उनको १४ वर्षो के लिए वनवास जाने को बोला राजा राम माता की बात मान कर १४ बर्षो के लिए वनवास चले गये तभी जाकर राजा राम भगवान राम कहलाये | आज विश्व उनकी पुजा करता है |
माँ के शब्द कभी विफल नहीं होते चाहें क्रोध कहे या सरलता से माँ के शब्द संतान के लिए सदैव अनुकूल ही होते है | इसलिए कहते है माँ अगर क्रोध वस् कभी बुरा भी बोले या कुछ करने बोले तो मना मत मानना |'माँ ही है जो हर परिस्तिथि में तुम्हारा भला चाहती है और करती भी है |
चाहे आपकी माँ जीवित हो या स्वर्गवाशी कभी भी माँ के अलवा अन्य किसी भी नारी का अपमान न करे |
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